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Biography of Soichiro Honda | Story of Honda company in Hindi

Biography of Soichiro Honda



 एक नौजवान जब ज़िंदगी की दहलीज पर कदम रखता है तो उसके सपने बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। 1938 का जापान था। हौंडा दिन में पढाई करता और रात में गाड़ियों में उपयोग होने वाले पिस्टन औऱ रिंग बनाने के लिए अध्ययन करता था। सालों की कड़ी मेहनत से एक पिस्टन बनाने के बाद उसे उन्होंने टोयोटा के सामने रखा जिसे ख़ारिज कर दिया गया ।



क्या होंडा ने सपने देखना छोड़ दिया.? ऐसा नहीं हुआ बल्कि वो उसे ज़्यादा बेहतर बनाने में जुट गया। टोयोटा को बेचने की बजाय अब उसने खुद पिस्टन बनाने की फैक्ट्री का सपना देखा। अगले कुछ वर्षों में वो नींव रख चुका था । तबतक जापान द्वितीय विश्व युद्ध में कूद गया। जापान पर हुई अमेरिकी बमबारी में होंडा प्लांट भी मलबे का ढेर बन गया। होंडा ने सपना देखना छोड़ दिया?


युद्ध ख़त्म हो गया। होंडा के पास निवेश नहीं था। जापान में लगभग 18 हज़ार साइकिल की दुकानें थीं। होंडा ने सबको पत्र लिखकर मोटरसाइकिल का आईडिया दिया और निवेश करने को कहा। तीन हज़ार ने जवाब दिया और होंडा की मोटरसाइकिल बाज़ार में आ गई।


दरअसल बचपन से ही होंडा के संस्थापक सोइचिरो होंडा की ऑटोमोबाइल में रुचि थी।वे एक बेहद ग़रीब लुहार थे औऱ अपने जीवन के शुरुआती दिनों में पिता के साथ मिलकर पुरानी औऱ टूटी हुई साइकिलें ख़रीदकर उन्हें ठीक कर बेचते थे।औजारों से उन्हें शुरु से खेलने का शौक़ था।


सोइचिरो होंडा का जन्म 17 नवंबर 1906 को जापान के एक छोटे से गांव शिजुओका में हुआ था। होंडा को पढ़ाई-लिखाई पसंद नहीं थी। यही वजह रही कि उन्होंंने लगभग 16 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ दी थी।


एक दिन उन्होंने अखबार में 'शोकाई' कार कंपनी में मैकेनिक की नौकरी का प्रस्ताव देखा और टोक्यो चले गए। उन्हें काम तो मिल गया, लेकिन उनकी उम्र को देखते हुए केवल साफ-सफाई का काम ही दिया गया। सोइचिरो उस छोटी-सी कंपनी में सबसे कम उम्र के कर्मचारी थे।


सोइचिरो ने शोकाई कार कंपनी के मालिक से निवेदन किया कि उन्हें मैकेनिक का काम सीखने दिया जाए। उनके निवेदन को स्वीकार करते हुए कंपनी के मालिक ने सोइचिरो को दूसरी ब्रांच में भेज दिया। यहां रात को रेसिंग कार तैयार की जाती थीं। सोइचिरो अपनी लगन और मेहनत से बहुत जल्दी काम सीख गए और एक उम्दा मैकेनिक बनकर उभरे। 


23 नवंबर 1924 को शोकाई कंपनी की कार ने पांचवी जापान कार चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। यह सभी कारों को पीछे छोड़ते हुए रेस में प्रथम आई। सोइचिरो ही इस जीतने वाली कार के मैकेनिक थे। जीत के बाद यह टोक्यो की पसंदीदा कार बन गई। अब कंपनी की अन्य शाखाएं खुल गईं। इन शाखाओं में से एक की जिम्मेदारी 21 साल के सोइचिरो को दी गई।


1928 में सोइचिरो ने शोकाई कंपनी छोड़ दी और घर वापस आ गए। यहां वे मैकेनिक का काम करने लगे। कुछ दिन बाद उन्होंने बड़ी कंपनियों के लिए सस्ते और टिकाऊ पिस्टन रिंंग्स बनाना शुरू किए। उन्होंने अपनी सारी पूंजी लगाकर एक कंपनी खोली और प्रयोग शुरू कर दिया।


अपने बनाए पिस्टन को बेचने के लिए बड़ी कंपनियों से संपर्क किया। जल्द ही उन्हें 'टोयोटा' को पिस्टन रिंग्स सप्लाई करने का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया। लेकिन इस बीच एक रेस के दौरान उनका एक्सिडेंट हो गया और वे बुरी तरह जख्मी हो गए। उन्हें तीन महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा।


अस्पताल में उन्हें पता चला कि उनके बनाए पिस्टन की क्वालिटी तय मानकों के अनुसार पास नहीं हुई। उन्होंने टोयोटा का कॉन्ट्रैक्ट खो दिया। जीवन में सब उनके खिलाफ चल रहा था। उनके जीवन की पूरी कमाई डूब चुकी थी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और पिस्टन की क्वालिटी को सुधारने के लिए कई कंपनियों के मालिकों से मिले।


लेकिन तभी एक और आफत आ गई। 1944 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी बी 29 हमले में उनकी फैक्ट्री पूरी तरह जल गई। इस घटना ने उन्हें दहला दिया था, लेकिन युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने अपनी कंपनी के अवशेषों को चार लाख पचास हजार येन में बेचा और अक्टूबर 1946 में उन्हीं पैसों से 'होंडा टेक्निकल रिसर्च इंस्टिट्यूट' खोला।


युद्ध में हारने के बाद जापान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह डगमगा गई थी। लोग पैदल या साइकल से चलने को मजबूर थे। इन समस्याओं को देखते हुए सोइचिरो ने एक छोटा इंजन बनाकर साइकिल से जोड़ दिया। उनका यह कॉन्सेप्ट लोगों को पसंद आया और बाइक बिकने लगी। यहीं से सोइचिरो की सफलता शुरू हुई। 


1949 में उन्होंने कंपनी का नाम 'होंडा टेक्निकल रिसर्च इंस्टिट्यूट' से बदलकर 'होंडा मोटर्स' रख दिया। इसी साल उन्होंने टू-स्ट्रोक इंजन बाइक लॉन्च की। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कंपनी 1961 में हर महीने एक लाख मोटरसाइकिलों का उत्पादन करने लगी थी।


1968 में कंपनी के हर महीने का उत्पादन बढ़कर 10 लाख मोटरसाइकिल हो गया। जापान की अर्थव्यवस्था सुधरी और होंडा ने फोर व्हीलर्स में कदम रखा। सोइचिरो छोटे कर्मचारियों को भी बड़े अधिकारियों की तरह सम्मान देते थे। अपार सफलताओं के बाद 5 अगस्त 1991 में सोइचिरो होंडा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 


सोइचिरो ने छोटी-सी झोपड़ी में साइकिल बनाने से लेकर विश्वस्तरीय ऑटोमोबाइल कंपनी खड़ी करने तक का सफर अकेले ही तय किया। 


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